इंटरनेट की लत न लग जाए

इंटरनेट का अत्यधिक इस्तेमाल किसी नशे की आदत से कम नहीं। इससे प्रभावित होता है किशोरों का सामान्य जीवन व विकास। जरूरी है समय रहते इस पर नियंत्रण करना…

अंशिका की उम्र 17 वर्ष है। पढ़ाई में वह ठीक है, पर उसकी उम्र के अन्य बच्चों की तरह आउटडोर गेम्स में उसकी कोई रुचि नहीं है। सहेलियों से मिलना-जुलना भी उसे अच्छा नहीं लगता। उसका ज्यादातर समय अपने लैपटॉप पर बीतता है। लैपटॉप पर गेम्स खेलने और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दोस्तों से कनेक्ट रहना उसे भाता है। अंशिका के माता-पिता लैपटॉप से चिपके रहने की अंशिका की इस आदत से परेशान हैं। उन्होंने अंशिका को लैपटॉप से दूर करने व उसे सामान्य जिंदगी में वापस लाने की हर संभव कोशिश की। इंटरनेट का कनेक्शन हटवा दिया। उसका लैपटॉप छिपा दिया, पर इसका सकारात्मक प्रभाव पडने के बजाय एकदम उलटा असर हुआ। अंशिका ने खाना-पीना छोड़ दिया। उसने माता-पिता को धमकी दे डाली कि अगर उसका लैपटॉप वापस न मिला तो वह स्कूल नहीं जाएगी। उसकी इस जिद और धमकी से मां-बाप भी बेबस और परेशान हो गए। उन्हें समझ नहींआ रहा था कि वे क्या करें?

यह सिर्फ अंशिका की समस्या नहीं, बल्कि उसकी उम्र के बहुत से किशोरों की यही समस्या है। रात-दिन लैपटॉप व इंटरनेट से जुड़े रहने की उनकी आदत ने उनकी सामान्य जिंदगी व विकास को काफी बुरी तरह प्रभावित किया है। विशेषज्ञ इस आदत को इंटरनेट एडिक्शन बताते हैं। विशेषज्ञों की राय में इंटरनेट एडिक्शन की तह में और भी कई गंभीर समस्याएं हैं। पढ़ाई व जीवन में आगे बढने का तनाव, सामाजिक मेलजोल में परेशानी इत्यादि समस्याएं इंटरनेट एडिक्शन को बढ़ावा देती हैं। किशोरों को लगता है कि लैपटॉप व इंटरनेट पर समय बिताने पर वे अपनी इन समस्याओं को भुला सकते हैं। सामान्य बातचीत में अंशिका ने अपने मन की परतें खोलते हुए कहा कि मुझे अपनी जिंदगी अच्छी नहीं लगती। मैं खुद से प्यार नहींकरती। मैं सिर्फ तभी अच्छा महसूस करती हूं, जब इंटरनेट पर वर्चुअल वल्र्ड के अपने दोस्तों के साथ गेम खेलती हूं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक मादक पदार्थ की लत रखने वाले शख्स को नशे की हालत में जिस आनंद की प्राप्ति होती है, ठीक वैसा ही कुछ इंटरनेट एडिक्ट किशोर व युवा महसूस करते हैं जब उन्हें अपने फेसबुक पेज पर लाइक या गेम में जीत हासिल होती है। इंटरनेट एडिक्शन की इस समस्या से बचने के उपाय समय रहते करना आवश्यक है।

हो जाएं सावधान…

-अगर आपका बेटा या बेटी अपने आसपास के महौल के प्रति उदासीन रहता है। सामाजिक मेल-जोल से उसने जानबूझ कर दूरी बना ली है, ताकि अपना सारा समय वह लैपटॉप व इंटरनेट पर व्यतीत कर सके।

-अगर आप उसका लैपटॉप ले लेती हैं या वाई-फाई कनेक्शन ऑफ करती हैं तो उसका मूड बेहद उखड़ जाता है।

-उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन नजर आता है, जब आप उससे इंटरनेट के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर सवाल करती हैं। इस संबंध में उसे आपसे झूठ बोलने से भी गुरेज नहींहोता।

-इंटरनेट पर समय बिताने के बाद थोड़ी देर के लिए उसे स्विच ऑफ करने पर भी उसके दिमाग में वही बातें घूमती रहती हैं। उसे आपसे या आसपास के माहौल से कोई मतलब नहींहोता।

-इंटरनेट एडिक्शन की इस आदत के कारण उसका सामान्य जीवन प्रभावित होता नजर आता है। स्कूल में उपस्थिति कम हो जाती है। खाना-पीना व सोना समय से नहींहोता।

-उसकी इस आदत के कारण घर पर माता-पिता के साथ तनाव का माहौल बन जाता है।

नियंत्रण के उपाय…

संवाद व जुड़ाव कायम करें

बच्चे की दुनिया का हिस्सा बनने की कोशिश करें। उसके आसपास रहें। हो सकता है कि शुरुआत में वह इसे पसंद न करे, पर आपको उसके आसपास रहना है। उससे बातचीत करें। उसके पसंदीदा टीवी शो, फिल्मों, म्यूजिक इत्यादि की चर्चा करें। उसकी बातों को सुनें।

सोच को करें साझा

एक बार जब दूरियां पिघलने लगें तो बातों ही बातों में उसके सामने अपना पक्ष रखने की कोशिश करें। इंटरनेट के इस्तेमाल को लेकर उसकी सोच जानें। फिर बेहद संयमित शब्दों में अपनी सोच साझा करें। हो सकता है कि उसे आपका पक्ष भी उचित लगे और इंटरनेट के नियंत्रित इस्तेमाल को लेकर कोई बीच का रास्ता निकल आए। इंटरनेट के संतुलित इस्तेमाल का यह नियम परिवार के सभी सदस्यों पर समान रूप से लागू होना चाहिए।

मनोरंजन के अन्य विकल्प

लैपटॉप पर वीडियो गेम्स का आकर्षण व रोमांच जबर्दस्त होता है। वहींरोमांच उसे दूसरे माध्यमों से मिलना मुश्किल है, पर इस संबंध में कोशिश जरूर करें। उसे गिटार, मार्शल आर्ट या डांस क्लासेज जॉएन करने के लिए प्रेरित करें। इनडोर व आउटडोर गेम्स भी अच्छे होते हैं। उसे इनके फायदे बताएं। हो सकता है कि धीरे-धीरे उसे इनमें मजा आने लगे।

काउंसलर से परामर्श

उपरोक्त उपायों के बावजूद अगर समस्या बनी रहती है तो उसे बाल मनोवैज्ञानिक सलाहकार के पास उसे ले जाएं। बच्चे की मनोस्थिति व पूरी परिस्थितियों को समझकर समस्या का समाधान सुझाना बाल मनोवैज्ञानिक सलाहकार के लिए संभव होगा। इंटरनेट के इस्तेमाल पर विराम लगाना तो संभव नहीं है, पर यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि बच्चा इंटरनेट एडिक्शन का शिकार न हो जाए। इस संबंध में शुरू से ही समझ-बूझ अपनाना जरूरी है।

This post has already been read 7786 times!

Sharing this

Related posts